Maa thave bhawani ki utpati. 
मां थावे भवानी की उत्पत्ति।
भारत देश के बिहार राज्य में :
                 
                  
                
      
मां थावे भवानी की उत्पत्ति।
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| Thave bhawani | 
गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर सिवान जाने वाले मार्ग पर थावे नाम का एक स्थान है, जहां मां थावेवाली का एक प्राचीन मंदिर है। मां थावेवाली भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं।
 ऐसे तो साल भर यहा मां के भक्त आते हैं, परंतु शारदीय नवरात्र और चैत्र नवारात्र के समय यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है।
मान्यता है कि यहां मां अपने भक्त रहषु के बुलावे पर असम के कमाख्या स्थान से चलकर यहां पहुंची थीं ।कहा जाता है कि मां कमाख्या से चलकर कोलकाता (काली के रूप में दक्षिणेश्वर में प्रतिष्ठित), पटना (यहां मां पटन देवी के नाम से जानी गई), आमी (छपरा जिला में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध स्थान) होते हुए थावे पहुंची थीं और रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दीं थी। देश की 52 शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के पीछे एक प्राचीन कहानी है।
बड़े बुजुर्ग से यहीं सुनते आ रहे है कि मनन सिंह हथुआ के राजा थे।
वे अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे। गर्व होने के कारण अपने सामने वे किसी को भी मां का भक्त नहीं मानते थे। इसी क्रम में राज्य में अकाल पड़ गया और लोग खाने को तरसने लगे। थावे में कमाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहता था। कथा के अनुसार रहषु मां की कृपा से दिन में घास काटता और रात को उसी से अन्न निकल जाता था, जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा। परंतु राजा को विश्वास नहीं हुआ।
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| Thave bhawani bhakt Rahsu | 
राजा ने रहषु को ढोंगी बताते हुए मां को बुलाने को कहा। रहषु ने कई बार राजा से प्रार्थना की कि अगर मां यहां आएंगी तो राज्य बर्बाद हो जाएगा। परंतु राजा नहीं माने। रहषु की प्रार्थना पर मां जब  कोलकता पहुँची,भक्त रहषु ने कहा मान जायें राजाजी। राजा ने नहीं माना। पटना और आमी पहुँची । भक्त रहषु ने हाथ जोड़कर राजा से आग्रह किया अब भी   मान जायें!  सारा राज पाठ नाश हो जाएगा! भवानी माता यहां थावे पहुंची। राजा के सभी भवन गिर गए और राजा की मौत हो गई।
मां ने जहां दर्शन दिए, वहां एक भव्य मंदिर है तथा कुछ ही दूरी पर रहषु भगत का भी मंदिर है। मान्यता है कि जो लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं वे रहषु भगत के मंदिर में भी जरूर जाते हैं नहीं तो उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है। इसी मंदिर के पास आज भी मनन सिंह के भवनों का खंडहर भी मौजूद है।
मंदिर के आसपास के लोगों के अनुसार यहां के लोग किसी भी शुभ कार्य के पूर्व और उसके पूर्ण हो जाने के बाद यहां आना नहीं भूलते। यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते हैं।
मंदिर का गर्भ गृह काफी पुराना है।तीन तरफ से जंगलों से घिरे इस मंदिर में आज तक कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। नवरात्र के सप्तमी को मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन मंदिर में भक्त भारी संख्या में पहुंचते हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग 85 के किनारे स्थित मंदिर सीवान जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर है। सीवान और थावे से यहां कई सवारी गाड़ियां आती हैं: जैसे - बस और टाटा मैजिक। 
आइए इस कोरोना महामारी से निजात पाने  के लिए  हम सभी मिलकर एक स्वर में एक साथ एक गीत के  माध्यम से मां थावे भवानी से आराधना करे वो हमारी विनती जरूर सुनेंगी। 
दुर्गा भजन
     संकट बा भारी फइलल चारु ओर  महामारी 
               माई हे रक्षा करी ना।  
             दुनिया  रोवे पुका फारी 
              माई हे रक्षा करीं ना। 
                हे चन्द्र घंटा माई  हे शैलपुत्री 
                   अइनी शरण तिहारी ना ।
                    भक्ता विनवे कर जोरी 
                    माई हे रक्षा करीं ना ।
संकट बा भारी...........................  .......  ।
    आज सभे आन्हर बावे आज सभे  लंगड़ 
            सभके आगे लाचारी ना। 
            आइल कोरोना बेमारी 
                माई हे रक्षा करीं ना 
संकट बा भारी......................................   ।
         तड़पत जियरा  हाथे घीउवा के दियरा 
                   अइनी असरा करी ना           
                 थावे भवानी के शरनियां 
                    माई हो रक्षा करी ना 
   संकट बा भारी......................................।                                              जय थावे भवानी।।
धन्यवाद पाठकों,
रचना-कृष्णावती ।
Link: www.krishnaofficial.co.in
 
 
 
 
 

 
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