Holika dahan ki sankshipt Katha evm Gaon ki holi par poem।होलिका दहन की संक्षिप्त कथा और गाँव की होली पर कविता। - Krishna Official

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रविवार, 1 मार्च 2020

Holika dahan ki sankshipt Katha evm Gaon ki holi par poem।होलिका दहन की संक्षिप्त कथा और गाँव की होली पर कविता।

Holika dahan ki sankshipt katha evm Gaon ki holi par kavita. होलिका दहन की संक्षिप्त कथा एवम गाँव की होली पर कविता। 

Gaon ki holi par kavita 


होली हिन्दूओं का महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्यौहार पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।प्रत्येक भारतवासी होली का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाते है।
होली के एक रात पहले होलिका को जलाया जाता है।
इसके पीछे एक लोकप्रिय पौराणिक कथा है।

   भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानते थे। उन्होनें विष्णु भक्त प्रह्लाद  यानि अपने पुत्र को विष्णु भक्ति करने से वर्जित करते थे। परन्तु प्रह्लाद विष्णु भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन हिरणकश्यप अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर भक्त प्रहलाद को मारने की योजना बनाई कयोंकि होलिका को आग में नहीं जलने का वरदान मिला था। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता पर बैठ गई। "प्रभु तेरी महिमा अजब निराली "
होलिका आग में जल कर भस्म हो गई। और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए। तभी से यह रंगों का त्यौहार होली भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
Gaon ki holi par kavita

Gao ki holi par kavita 

इस कथा से यही प्रेरणा मिलती है कि बुराई कभी नहीं अच्छाई को परास्त कर सकती है। 

अब मैंने रंगों के त्यौहार होली पर अपने शब्दों में कविता का रूप दिया है। आप सभी का प्यार अपेक्षित है।


                               कविता 


                फागुन मास बड़ा मनभावन
                फगुनी बहे ब्यार ।
                रंगों का त्यौहार आया
                जन जन ने भरा हुंकार। 

               खुशियों का सौगात ले आया
               यह रंगों की होली।
               नफरत ईर्ष्या भूल देखो
               आई रंगों की टोली।

               होली गावत नर नारी सब
               ढोल मृदंग बजाये।
               उच्च  नीच सब भेद भाव भूल
               होली त्यौहार मनाये।
             
Gaon ki holi par kavita

Gaon ki holi par kavita 

               भागे मुन्ना पकड़े टूना
               हरा रंग लगाये।
               ऐसा पका रंग लगाना
               मूंह से निकल ना पाये।

               रंग गुलाल से लाल गाल हुआ
               भीगा तन का पोशाक।
               दौड़ भाग पकड़म पकड़ाई
               मस्ती के संग खुब मजा़क।

              रंग छुड़ा कर थक गया टूना
              फूल गये दोनों गाल।
              क्या करुं कैसे निकालू
              हो गया बुरा हाल।

             पिचकारी ले मोहन दौड़ा
             गोबर ले नामधारी।
             सबका सकल बना बंदर सा
             गुब्बारों से हो मारा मारी।

            ऐसा लगे धरती पर उतरा
            इन्द्र धनुष सतरंगी।
            नाचे गावे ढोल बजावे
            होके  सब अतरंगी।
Gaon ki holi par kavita

Gaon ki holi par kavita 


           शरारत संग बच्चें खेलें
           मित रंग लाया प्यार भरा।
           बड़ो का आशीर्वाद मिला
           खाये पकवान स्वाद भरा।

           मस्त मगन बौराय गये सब
           फागुनी रंग ऐसा चढा़।
           रंग में भंग गुझिया पुवा संग
           चलत पांव गढ़े में पड़ा।

        धन्यवाद पाठकों 

         रचना -कृष्णावती कुमारी 

         

            

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