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मंगलवार, 3 मार्च 2020

Poem on International Women's day2020.महिला दिवस पर कविता2020।

Poem on women's day 2020.
Poem on women's day 
नमस्कार दोस्तों,

Poem on women's day||महिला दिवस पर कविता 

 "सूरज की रोशनी सेवा में गुजर गई ,

 चाँद की चाँदनी बच्चों को सुलाने में निकल गई। 

  जिस घर में मेरे नाम का एक कोना भी नहीं, 

  पूरी ज़िन्दगी उस घर को संवारने में लग गई। "


आज हम इक्कसवीं सदी में प्रवेश कर गये है। फिरभी हमें नारी दिवस मनाना पड़ रहा है। मैं तो कहती हूँ प्रत्येक दिन नारी का है। सुबह से लेकर शाम तक सारा संसार नारी मय ही तो है। नारी आज हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ  कंधा से कंधा मिलाकर चल रही है। फिर भी इस पुरुष प्रधान समाज में नारी कई बार टूटती है। आखिर कब होगा इस समाज का प्रायश्चित? कब तक माँअपनी बेटी को अपने आँचल से  ढकेगी? कब तक लोगों की विकृत मानसिकता में बदलाव आयेगा।
  आज  मैं अपने सभी नारियों का आह्वान करती हूँ कि आगे आएं और समाज को अपनी शक्ति से परिचय करायें।

आइए इसी भाव को मैंने अपने शब्दों में कविता का रूप दिया है,आप सभी का प्यार और टिप्पणी अपेक्षित है।

                महिला दिवस पर कविता 


             गर्व मुझे मैं नारी हूँ,
             भगवान की मैं आभारी हूँ।
             जग हमसे है जननी मैं हूँ,
             संसार में सबसे न्यारी हूँ।

            जब बैठ चली डोली में मैं,
            तज पीहर को ससुराल चली।
            क्या जानू क्या होगा आगे,
            पीहर को मैं बिसराय चली।

            पल में सारे रिस्ते बदले,
            बेटी से बहू का नाम मिला।
            किसी की भाभी किसी की चाची,
            किसी की भार्या का नाम मिला।

            भई भोर चली मैं आँगन में ,
            आसन बासन को साफ किया।
            सब नाक बजाये सोय रहे,
            उन्हें चाय के साथ सलाम किया।

            मैं अबला नहीं कमजोर नहीं,
            इतनी साहस मुझमें अब है।
            विश्वास की ऐसी आस हूँ मैं
            इतनी क्षमता मुझमें अब है।

            मैं लेखिका भी वैग्यानिक भी ,
            मैं कलाकार व्यवहारिक भी।
            मैं नेता भी सेना में भी,
            मैं राष्ट्रपति प्रधानमंत्री भी।

            अड़ जाऊं तो पर्वत तोड़ू ,
            डट जाऊं तो घर वर छोडू़।
            मैं मैरीकाँम गीता फोगाट,
            मैं चाहूँ तो जबड़ा तोड़ू।

            हम नारी हैं साधन नहीं ,
            अपनी माँ की दुलारी हैं वाहन नही।
            तू भी आजाद हम भी आजाद,
            उड़ने दो कोई बंधन नहीं।

            युग बदला दुनिया बदली,
            कब तुम बदलोगे बोलो ना!
            मैं तेरे घर की  इज्जत हूँ,
            कब प्यार करोगे बोलो ना!3

            धन्यवाद पाठकों, 

           रचना -कृष्णावती कुमारी 



IN English. 


            Poem on women's day 


Garv mujhe Mai naari hun. 
Bhagwan ki Main aabhari hun.
Jag hamse hai janani main hun.
Sansar men sebse nyaari hun. 

Poem on women's day 2020.
Poem on women's day 

Jab baith chali Mai doli men. 
Taj pihar ko sasural chali. 
Kya janu kya hoga aage, 
Pihar ko main visaray chali. 


Pal men sare riste badle, 
Beti se bahu ka naam Mila. 
Kisi ki chachi kisi ki Bhabhi, 
Kisi ki bharya ka naam mila. 


Bhai bhor chali mai aangan men ,
Aasan baasan ko saaf kiya.
Sab naak bajaye soy rahen, 
Unhen chaay ke saath salaam kiya. 


Main abala nhin kamjor nahin, 
Itni Sahas mujhmen ab hai. 
Vishwas ki aisi aas hun main, 
Itni kshamta mujhmen ab hai. 


Main lekhika bhi vaigyanik bhi, 
Mai kalakar vyvharik nhi, 
Main neta bhi sena men nhi. 
Mai rastrpati pradhanmantri Bhi. 


Ad jaun to parvat todun, 
Dt jaun to ghar var chhodun.
Main Mairikaum Geeta pogad, 
Main chaahun to jabada todun.


Ham naari hain saadhan nhin, 
Apni maan ki dulari hain. Vahan nhin. 
Tu bhi aajad ham bhi aajad, 
Udne do koi Bandhan nhin. 


Yug badala duniya badali, 
Kab tum badaloge bolo na! 
Main tere ghar ki ijjat hun,
Kab samman karoge bolo na! 3


Dhanyavad doston ,

Rachana -Krishnawati kumari 




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