नमस्कार दोतो,
पृथ्वी दिवस का संक्षिप्त इतिहास
Prithvi divas photo |
दुनिया में आदिवासी जनजाति हज़ारों सालों से पृथ्वी दिवस मना रहे है।
विश्व ने पचास साल पहले 22 अप्रैल 1970 से पृथ्वी दिवस मनाना शुरू किया है, जबकि भारतीय आदिवासी समाज में पृथ्वी को पूजने की परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है। छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति में हर साल पृथ्वी दिवस को 'गद्दी परब ' धूमधाम से मनाया जाता है।यूं तो भारत के लोग धरती को मां मानकर धरती, जंगल, पहाड़, प्रकृति की उपासना करते रहे हैं, लेकिन बात आदिवासी समाज की करें तो यह समाज धरती की पूजा और उपासना 'खद्दी परब' के रूप में चैत्र पूर्णिमा को मनाता है। इस बार चैत्र पूर्णिमा आठ अप्रैल [8.4.2020]को थी। लॉकडाउन के कारण आदिवासी समाज ने अपने घरों में ही धरती मां की पूूूूजा की। इस बार सामूहिक उत्सव नहीं मनाया गया। इस समाज के लिए यह पृथ्वी ही भगवान है।
आदिवासी मानते हैं कि प्रत्येक जीव धरती माता पर ही निर्भर है। ये धरती माता ही हैं, जो हमें अन्न, जल, फल-फूल, पेड़-पौधे, पहाड़, नदियां, झरने का सुख देती हैं। धरती की कृपा से ही जीवों का जीवन है । न केवल जंगलों में रहने वाले, बल्कि शहरी लोग भी पृथ्वी के इसी उपकार का आभार प्रकट करने के लिए सामूहिक रूप से पूजा करते हैं। हर इलाके के आदिवासी स्थानीय परंपरा के अनुसार धरती की पूजा करते हैं।
फोटो जंगल झरना पहाड़ |
"खद्दी परब " से देते हैं प्रकृति बचाने का संदेश
आदिवासी उरांव समाज के वरिष्ठ सदस्य एसआर प्रधान बताते हैं कि प्रकृति के महत्व को आदिवासी समाज ने हजारों साल पहले ही समझ लिया था। यही कारण है कि आदिवासी समाज के लोग 'पर पारंपरिक रीतिरिवाज के अनुरूप धरती माता, साल वृक्ष, फूल की पूजा-अर्चना करके प्रकृति को बचाने का संकल्प लेते हैं।
चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व इस साल आठ अप्रैल को मनाया जाना था, लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण खद्दी परब सामूहिक रूप से नहीं मनाया गया। लोगों ने घरों में ही पूजा की।
Dance on Earth Day by aadiwasi girls |
माटी तिहार भी इसी का एक रूप है।
आइए माटी तिहार के विषय में जानते है छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ संस्कृति कर्मी डॉ. डीपी देशमुखजी से-
आप बताते हैं ,कि बस्तर का माटी तिहार, >धरती परब या खद्दी परब< के समान माना जाता है। चैत्र माह में तृतीया के दिन मनााया जानेे वाला यह उत्सव बस्तर में आदिवासियों सहित बस्तर के सभी किसान भी इसे तिथि बदलकर अपने सुविधा के अनुसार मनाते हैं।लेकिन दिन सदैव मंगलवार ही पड़ता है।
धन्यवाद पाठकों,
कृष्णावती कुमारी,
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