नमस्कार दोस्तों,
मैं नारी हूं।
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.................................................................................................................... Mai Nari hun
मन के भावों को कहने का, जो सुंदर सरल तरीका है।शब्दों को गूंथ कर कहने से कविता बन जाती है। कविता के माध्यम से हम अपने दुख बतलाया करते हैं। खुशियों को भी बांटने का यह सबसे सरल तरीका है। इस लाँक डाउन में ऐसे ही महिलाओं के उपर अत्यधिक काम का भार है। फिर भी मैं अपनी रूचि को कविता के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूं।आप सभी का प्यार अपेक्षित है।
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कविता
मैं नारी हूँ
जिसने संसार बसाया ।
वीणा की झंकार से जग में,
ग्यान की ज्योति जलाया।
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दुष्टों का संघार किया ,
दुर्गा के रूप में आकर ।
भक्तों का उद्धार किया ,
कन्या का रुप धारण कर।
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कहीं जानकी कहीं मै सीता,
कहीं वन देवी बनकर।
लव कुश की माता हूं मैं,
अटल मानस पटल पर।
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धर्म की रक्षा की ख़ातिर,
कई कई रुप धरा मैंने।
चंडी काली कुष्मांडा,
कितने नाम पाया मैंने।
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Mai Nari hun
यग्य कुण्ड में कूद पड़ी,
प्राण त्यागिनी हूं मैं।
जग जाना हमें शक्ति रुप में,
शिव की स्वामिनी हूं मैं।
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बनी राम की सीता मैं,
बनी कृष्ण की राधा।
पाण्वों की बनी पटरानी
अपमान सदैव हमें साधा।
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प्रेम दीवानी मीरा हूं मैं,
जीवन भर योगिनी बनके।
राजपूतों की आन बान बनी,
शान रही क्षत्राणी बनके ।
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Mai Nari hun
लाज हूं किसी के घर की,
किसी की गृह लक्ष्मी हूं।
कहीं हूं बेटी कहीं बहू हूं,
किसी की प्रेम समर्पिनी हूं।
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अबला नहीं सबल हूं मैं,
पास हुई हर इम्तहान में।
अपमानित सदैव हुई हूं,
फिर भी आगे सबके सम्मान में।
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रण भूमि में असि उठाया ,
जब अपने पर आती।
कलम भी चलाती उसी गति से
जैसे असि चलाती।
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हां हां मैं वहीं नारी वहीं स्त्री हूं
जो जग की सृजन कारी।
हां है अभिमान मुझे अपने पर
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धन्यवाद पाठकों,
रचना -कृष्णावती कुमारी,
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