Poem on Roti ki raah रोटी की राह पर कविता। - Krishna Official

Krishna Official

Krishna Official is a blog for the readers who are interested in songs, music, poems and stories. Also this blog contains some musical videos, lyrics and tutorials.

Breaking

शनिवार, 9 मई 2020

Poem on Roti ki raah रोटी की राह पर कविता।

नमस्कार दोस्तों, 

हमारे हिन्दी आर्टिकल में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। आज मैं आप  सभी के साथ प्रवासी मजदूरों की परिस्थिति को साझा करने आई हूं। 
*****************************************

             Poem on Roti ki rah 

              रोटी की राह  पर कविता 


Poem on roti ki rah par
Roti ki bhukh 
*************************

रातभर अपनी मजबुरियों पर रोते हुए मनःचिन्तन करते निद्रा के आगोश में चले गए होंगे ! थक हार कर आराम  फरमाने का विचार किया होगा ! अपने परिवार से मिलने की प्रबल इच्छा संजोये हूये भोर होते ही गंतव्य की ओर जाने का विचार बनाया होगा! 
********************************

हे प्रभु! जल्दी से मुझे हमारे गाँव पहुँचा दो। अपनों के साथ गाँव में सुखी रोटी खाकर सुख से रहूंगा। परिवार के साथ प्यार से नमक रोटी खाकर जी लूंगा। पर मुझे मेरे गाँव पहुँचा दो! 

*******************************

हे भगवान किसी तरह अपने गाँव पहुँचना है। उन्हें क्या पता पल भर में सब कुछ बदल जायेगा। अपनों से मिलने की ललक माल गाड़ी के पहियों के नीचे सदा के लिए मिट जायेगी!!!! 
****************************** 
               Poem on roti ki rah par
      * *  *     रोटी की राह पर कविता।     *  **

ना हम होंगे, ना कोई वहां हमारा होगा!  सना खूँन से तन रेलवे पटरी के किनारे पड़ा होगा!! मैं कहां से हूँ !कौन हूँ! पहचान ढुढने में कितने वक्त  लग जायेंगे  !!! 

अब आइए मैंने पूरे प्रकरण को  एक छोटी सी कविता में पिरोने की कोशिश किया है, जिसका शीर्षक "रोटी की राह पर कविता " उम्मीद है आप सभी को पसंद आएगा हमेशा की तरह आप सभी का प्यारअपेक्षित है। 
         
Roti ki rah par kavita

photo roti ki

                          कविता 

          पहिले नाही सिर पर छप्पर,
          नाही दाना पानी। 
          अब सिर पर गठरी भारी ,
          बन्द है हुक्का पानी। 
  
          मीलों दूर अभी है मंजिल, 
          फिर भी चलते जाना है। 
          जब तक सांस रहेगा तन में, 
          हार कभी न मानना है। 
  
          चिलचिलाती धूप में दिन भर, 
          राह चलत थक जायें। 
          खाली पेट दिमाग है खाली
          छाले पांव सजाये।

          आस लगाये यहीं चले थे, 
          रोटी पानी कुछ बांधके। 
          एक झलक अपनों की मिले,
          एक झलक मेरे गांव के। 
**************************************
        
            रोटी की राह पर कविता 

         पर दुर्भाग्य भी साथ चली थी,
         छाया बनकर साथ में। 
         रात घनेरी ऐसे  आयी, 
         ले गई जीवन साथ में। 

.   

         दो दो रोटी सबके पास थी, 
         वो भी खूंन से सन गई!
         प्राण पखेरू निकल गये, 
         जब ट्रेन पटरी से गुजर गई! 

        फिर क्या! नहीं गाँव जा सका, 
        नहीं मिला परिवार! 
        गई लाश मेरी नगरी में, 
       अशुवन भीगा परिवार! 

       हाय रे!किस्मत,अपने पीछे ,
       छोड़ गये कातर अखियां!
       टुकुर टुकुर बाट निहारे, 
       नाथ तोहार मुनवा मुनिया!  
       

         धन्यवाद पाठकों,

         रचना-कृष्णावती ।


Read more my all post link

www.krishnaofficial.co.in
         
          

         


     

                        

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें