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बुधवार, 29 जनवरी 2020

Diwana yar mera sachcha pyar mera 2020/दिवाना यार मेरा सच्चा प्यार मेरा

Diwana yar mera Sachcha pyar mera /दिवाना यार मेरा सच्चा प्यार मेरा 


इस कविता में सच्चा प्रेमी अपने जीवन में प्यार पर अपनी पूरी ज़िन्दगी न्योछावर कर देता है। वैसे ही जैसे "भूख ना जाने जूट्ठा भात, प्यास ना जाने धोबी घाट " अर्थात-भूख लगने पर इंसान सिर्फ़ भोजन की चाहत रखता है और प्यास लगने पर प्यास बुझाने की। अपनी कविता में मैंने इसी भाव को दर्शाने की कोशिश किया है। आप सभी का प्यार अपेक्षित है। 

                     कविता
diwana yar mera sachcha pyar mera

Diwana yar mera sachcha pyar mera 

क्या बताऊं हाल अपना 
हाथ मलते रह गयी ।
लिख लिख सूखे पत्तों पर 
ले हवा उड़ा गई। 

भूख, गरीबी और महंगाई 
सबको हमसे प्यार था ।
प्यार मैं कैसे निभाऊं
मर्ज कई हजार  था। 

घर में टुटी चारपाई पर 
एक फटी चादर पड़ी। 
पेट दाबे भूख से 
मैं रही हरदम पड़ी। 

चोरी करने चोर आया 
देखकर चकरा गया। 
क्या करूँ मैं क्या कहूँ
खुद ही वो घबरा गया। 

मैं उठी अवाक होकर 
ढिबरी उतारी ताख से ।
वो बोला ठहर जरा
तिल्ली जलाना बाद में। 

अरे रूक, ठहर ,तू कौन है ?
क्यों आया मेरे पास रे? 
मैं भिखारन खुद ही हूँ 
क्या लुटेगा आज रे। 

हूँ! अब तू पीछा छोड़ दे 
तू चोर नहीं बीमार है।
मेरे दिल में तेरे खातीर 
तनिक अब ना प्यार है। 
Diwana yar mera sachcha pyar mera
diwana yar mera sachcha pyar mera 

दीन हीन  मैं तब भी थी 
अब भी हूं मुझे छोड़दे ।
मेरी नैया है भँवर में 
अब इसे डुबने ही दे। 

तेरी ख़ातिर सुबह रोया शाम रोया 
दिल को चैन ना आया। 
सुना की अब तेरे सिर से 
गया पति का साया। 

तेरी यादों की चादर में 
हरदम मैं लिपटा रहा। 
दर्द मेरा तू क्या जाने 
तेरे अश्क में भीगा रहा। 

अब ना कोई छिन पायेगा
मेरे से तुझको। 
रोक पायेगा ना कोई 
इस करम से मुझको ।

लड़के आया हूँ मैं तेरे 
गाँव में समाज से। 
रोक पायेगा ना कोई 
तू है मेरी आज से। 

दिल की डोली में बिठाकर 
मैं ले जाऊंगा तुझे।
रब भी मेरे साथ है 
लेके जाऊँगा तुझे। 

दुनिया वालो से छुपाकर 
ले जाऊंगा दूर कहीं। 
एक छोटा घर बनाऊंगा 
तेरे लिए वहीं। 
Diwana yar mera sachcha pyar mera

Diwana yar mera 


छोड़ दो जिद अब आ जाओ
हाथ दे दो हाथ में। 
कट जाएगी बची खुची 
ज़िन्दगी अब साथ में। 

वो कहते हैं न! 
अंत भला तो सब भला। 
ज़िन्दगी जी भरके जी लो 
जिने की यही कला। 

             धन्यवाद पाठकों
              रचना -कृष्णावती कुमारी 





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