NATURES BRUTALITY ON POOR / प्रकृति का कहर गरीबों पर - Krishna Official

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मंगलवार, 7 जनवरी 2020

NATURES BRUTALITY ON POOR / प्रकृति का कहर गरीबों पर


हाड़ कपकपाती ठन्ढ हो,या जेठ की चिल चिलाती धूप, या मूसलाधार बारिश का मौसम हो गरीब  तपके के लोगों के लिए मुश्किलें ही लेके आती है। उपरोक्त तस्वीर  को देखते हुए अपनी संवेदनाओं को सरल भाषा में कविता का रूप दिया है। आपका प्यार अपेक्षित है।

                    प्रकृति का कहर गरीबों पर

बड़ा दर्द होता है जब कपकपाती ठन्ढ  पड़ती ।
पतली गमछा से ढंके वदन ना जाये  शरदी  !

बड़ा दर्द होता है! जब वो तपती गरमी सहते
रोटी के जुगाड़ में इधर-उधर घूमते।

जब टपके छपर से पानी 
कभी किनारे कभी बीच में
इधर छुपाते उधर छुपाते
अपना राशन पानी।

पांव था नंगा गरम धूप में,
लतपथ वदन पसीने में।
कभी सिर पर ईंट उठाते
कभी छुपते जीने   में!

हे प्रभो! ऐसा दर्द ना दें मानव को
बड़ा दर्द होता है !
जो इस पथ से गुजरा हो,
उसे सहन नहीं होता  है !

मैं भी इस दर्द से गुजरी हूं,
सह धूप घाम पानी पत्थर।
तब जाके  कहीं,
मैं निखरी हूं। 

                    धन्यवाद पाठकों
                    रचना-कृष्णावती



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