नमस्कार दोस्तों,
मैंने मन:स्थिति को चन्द पंक्तियों में व्यक्त किया है,आप सभी का प्यार व आशीर्वाद अपेक्षित है।मेरा मन कहता
जो तोड़ दिया उससे,जुड़ो मत,
जो छोड़ दिया उससे पूछो मत।
न जाने कौन सी मनसा हो,
न जाने कौन सी लालसा हो।
तुम याद करो उस पल को जो,
जिस पल , कटु शब्दों से प्रहार किया।
वो अपना है ,वो अपना था,
जो तार तार रिश्ते को किया।
जब दुर्जन पास में आया हो,
जानो मतलब कोई लाया हो।
वो कब कौन सी चाल चले,
शायद कहीं पिछे से वार करे ।
बचके रहना उस दुर्जन से ,
जो काम ना आए जीवन में।
दु:ख के पल में जो, ना साथ दिया,
वो ख़ाक तेरा अपना होगा ?
जिसे तनिक ना भय समाज की हो,
जिसे तनिक ना लाज रिश्ते की हो।
वो अज्ञानी है अभिमानी है,
जिसकी अपनी कोई साख ना हो।
धन्यवाद पाठकों
रचना-कृष्णावती कुमारी
Wah.. bahut hi sundar rachna
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