PREET HAI AJAB NIRALI
प्रीत है अजब निरालीजब प्रीत की लत लग जाती है
दिन रैन चैन नहीं आती है।
हियरा में आग लगाती है।
रैना निंदिया नहीं आती है।
जिया धड़क धड़क
जिया तड़प तड़प
रहिया में नैन बिछाये हैं।
आवन की आश लगाये हैं।
चाहे प्रीत मीत के संग में हो।
चाहें प्रीत पिया के रंग में हो ।
बड़ी प्यारी है ओ दुलारी हैं।
महके जैसे फुलवारी हैं।
रंग ऐसा है जहां चढ़ जाये।
उसपर दूजा ना रंग भाये।
प्रीत पावन है मन भावन है।
प्यासे की प्रयास बुझावन है।
प्रीत है अजब निराली |
बन्द आंखों में मुझे रहने दो।
श्रींगार प्रीत का करने दो।
कोई रोको ना कोई टोको ना।
प्रीत जी भरके मुझे जीने दो।
रचना- कृष्णावती कुमारी
Karna sab kuch kintu na karna prit na karna ...
जवाब देंहटाएंBohut khub likha hai mam
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